Monday, May 21, 2007

गड़े मुर्दे मत उखाड़ों मेरे भाई

(मेरा यह लेख उन महानुभवों को समर्पित है जो अक्सर कुछ ऎसे विषयों को चर्चा के लिए चुन लेते हैं जो विचारों का अदान-प्रदान करते-करते ,अपशब्दॊं का इस्तमाल करनें पर उतारू हो जाते हैं।)हम मे से कुछ चिट्ठाकार हमेशा गड़े मुर्दे उखाड़ते रहते हैं। मुझे समझ नही आता कि वे उन की पेरवी कर रहे हैं या उन को उकसाने का काम कर रहे हैं।यह बात सही है कि अपनी बात रखने की सबको आजादी है।लेकिन इस का मतलब यह नही होना चाहिए कि हम शब्दो की मर्यादाऒ का ध्यान ना रखते हुए ।एक दूसरे को आहत करने पर उतारू हो जाए।किसी भी बुरी घट्ना की बार-बार चर्चा करने से वह परिस्थितियां बदल तो नही सकती।हाँ, यदि आप के पास उस समस्या का हल है तो उसे जरूर बताइए। ताकी कोई रास्ता भी निकले और जिस की आप पेरवी कर रहे हैं,उस के घावों का भराव भी हो जाए।लेकिन यह इनकी कैसी सहानुभूति है उन के प्रति ? यदि हम सभी गड़े मुर्दे ही उखाड़ते रहेगे तो इस वाक युध का क्या कभी अन्त होगा ? फिर तो हमे अपनें पुरानें इतिहास को खंगालना पड़ेगा।फिर सभी का नंगापन नजर आनें लगेगा।क्यूँकि सभी ने कभी ना कभी गलती तो की ही होगी। चाहे वह अंनजाने में हुई हो या जान बूझ कर की हो(जिन्होने जान बूझ कर गलती की है ,उन्हे सजा मिलनी चाहिए।सजा देना अदालत का काम है)।अच्छॆ बुरे लोग हर जगह मिलते हैं और आगे भी मिलते रहेगें।अरे भाई! किसी ने कहा है ना....छोड़ों कल की बातें ...वह हैं बात पुरानी.....नये दौर मे मिलकर लिखें... नयी कहानी.......हम हिन्दुस्तानी....हम हिन्दुस्तानी...।

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